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पूरा था बंदोबस्त, फिर कैसे राम रहीम भक्तों ने जला दिया पंचकूला?

गुरमीत राम रहीम पर फैसला आना था, ये सब जानते थे। राम रहीम के हरियाणा और पंजाब में लाखों समर्थक हैं, ये भी जानते थे। बाबा के खिलाफ फैसला आएगा तो हिंसा भड़क सकती है, ये बात प्रशासन, सरकार और पुलिस सभी को अच्छे से पता थी। फिर भी ऐसे कैसे फैसला आते ही हरियाणा में जगह-जगह पर हिंसा भड़क गई और 26 लोगों ने अपनी जान गंवा दी।

इस वक्त सबसे बड़ा सवाल ये है कि जब हरियाणा की सरकार और पूरा प्रशासन हफ्ते भर पहले से ही पूरे राज्य को छावनी में तब्दील करने में लगा था तो उसके बाद भी इतनी हिंसा और नुकसान कैसे हो गया?

पूरे प्रदेश की पुलिस के अलावा बाहर से भी सुरक्षा बल और दमकल गाड़ियां मंगवाई गईं लेकिन फिर भी हरियाणा जलने से नहीं बच पाया। सबसे पहले नजर डालते हैं कि गुरमीत राम रहीम पर फैसले से पहले राज्य में प्रशासन ने सुरक्षा के लिए क्या क्या इंतजाम किए थे।

1. इलाके में लगाई थी धारा -144

2. अर्धसैनिक बलों की 150 से ज्यादा कंपनियां तैनात थीं

3. तकरीबन 15 हजार अर्धसैनिक हरियाणा में मौजूद थे

4. पूरी हरियाणा और पंजाब पुलिस हाई अलर्ट पर थी

5. पंचकुला में करीब 43 हैवी बैरिकेडिंग के साथ-साथ सीमाएं सील कर दी गईं थीं

लगातार खबरें आ रही थीं कि हरियाणा खासकर पंचकुला और चंडीगढ़ की सभी सीमाएं सील कर दी गई हैं। बाहर के राज्य और जिलों से कोई भी वाहन आ या जा नहीं सकता। साथ ही 200 से ज्यादा ट्रेनें रद्द कर दी गई थीं तो फिर कोर्ट के बाहर पंचकुला में और आसपास के इलाकों में लाखों समर्थक कैसे पहुंच गए हैं। समर्थक सिर्फ वहां मौजूद नहीं थे, वो लगातार प्रशासन और पुलिस को चैलेंज कर रहे थे कि अगर बाबा को दोषी करार दिया गया तो वो सबकुछ तबाह कर देंगे। सिर्फ इतना ही नहीं रात में इन समर्थकों के लिए चाय-पानी और खाना सबकुछ मौजूद था।

सबसे बड़ा सवाल ये कि इन समर्थकों को कोर्ट के आसपास आने ही क्यों दिया गया? ये तो कॉमन सेंस की बात है कि अगर इतनी भारी मात्रा में राम रहीम के चाहने वाले जिले में मौजूद हैं तो फैसले के बाद गड़बड़ होने पूरे चांस थे। पुलिस ने जिन स्टेडियम को अस्थाई जेल के रूप में तब्दील किया था, डेरा समर्थकों को वहां रखा जा सकता था लेकिन ऐसा नहीं हुआ?

सौ बातों की एक बात ये है कि हरियाणा की खट्टर सरकार स्थिति का ठीक से आंकलन नहीं कर पाई। सरकार की इंटेलिजेंस यूनिट अपना काम करने में नाकाम रही। धारा-144 होने के बावजूद डेरा समर्थकों को पार्कों और सड़कों पर जमा होने को गंभीरता से नहीं लिया गया। कोर्ट के आदेश के बावजूद पुलिस और प्रशासन डेरा समर्थकों को राज्य से बाहर नहीं रोक पाई।

सरकार और प्रशासन की लापरवाही का नतीजा ये है कि करोड़ो की सरकारी संपत्ति नष्ट हो गई और कई लोगों ने अपनी जान गंवा दी।