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सूरज से बचने के लिए समझें सनस्क्रीन का फंडा

गर्मियां आते ही टीवी, रेडियो, न्यूजपेपर, मैगजीन और इंटरनेट सनस्क्रीन के विज्ञापनों से पट जाते हैं। एक-दूसरे से आगे रहने की होड़ में हर ब्रैंड अपनी अलग यूएसपी लेकर बाजार में आ जाता है। इन विज्ञापनों में ऐसी कहानियां दिखाई जाती हैं कि हर कोई सोचता है कि अगर इसे इस्तेमाल किए बिना बाहर निकल गए, तो त्वचा की रौनक खोकर ही वापस आना है, क्योंकि इस तरह की चेतावनी आम है कि जब भी कोई तेज धूप के सीधे संपर्क में आता है, तो गर्मी लगने के साथ-साथ त्वचा के झुलसने, रंग सांवला होने, चेहरे पर झुर्रियां आने और यहां तक कि सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों के असर से त्वचा का कैंसर तक हो सकता है। ऐसे में जरूरी है सनस्क्रीन के फंडे को विस्तार से समझने की।

समझें सनस्क्रीन का फंडा

एसपीएफ सूर्य की किरणों से बचाव का एक मानक शब्द है। यह एक रेटिंग फैक्टर है जो बताता है कि कोई सनस्क्रीन या सनब्लॉक आपको किस स्तर तक बचाव देता है। एसपीएफ रेटिंग का आधार सुरक्षित त्वचा पर सूरज की किरणों का असर होने में लगने वाले समय और बिना प्रोटेक्शन वाली त्वचा पर सूर्य की किरणों के असर में लगने वाले समय की तुलना है। उदाहरण के तौर पर अगर किसी को एक घंटा धूप में रहने से सनबर्न होता है तो एसपीएफ 15 उसे 15 घंटे धूप में रहने की आजादी देगा, मतलब सनबर्न होने में 15 गुना ज्यादा समय लगेगा। मगर ऐसा तभी हो सकता है जब इन पूरे 15 घंटों में धूप का असर एक सा हो, जो कि संभव नहीं है। मसलन सुबह के समय धूप का असर कम होता है और दोपहर में काफी ज्यादा।

सनस्क्रीन बनाम सनब्लॉक

आप सोच रहे होंगे, अगर सनस्क्रीन और सनब्लॉक दोनों सूरज की किरणों से सुरक्षा देते हैं तो इनमें फर्क क्या है। दरअसल, अल्ट्रावायलेट किरणों की दो कैटिगरी होती हैं- यूवीए और यूवीबी। यूवीए किरणें ज्यादा खतरनाक होती हैं क्योंकि ये त्वचा पर लंबे समय तक रहने वाले असर छोड़ती हैं। दूसरी ओर यूवीबी किरणें सनबर्न और फोटो एजिंग के लिए जिम्मेदार होती हैं। एक्सर्पट्स के मुताबिक, सनस्क्रीन यूवीबी किरणों को मामूली रूप से फिल्टर करता है जबकि सनब्लॉक में जिंक ऑक्साइड होता है जो दोनों तरह की किरणों से त्वचा की रक्षा करता है।

फिजिकल सनस्क्रीन बेहतर

मार्केट में दो तरह के सनस्क्रीन उपलब्ध हैं, फिजिकल सनस्क्रीन और केमिकल सनस्क्रीन।

– फिजिकल सनस्क्रीन का अधिकतम एसपीएफ 20 होता है, जिसमें केमिकल बेहद कम होता है, जबकि केमिकल सनस्क्रीन में 20 से ज्यादा एसपीएफ होता है और इसमें काफी ज्यादा मात्रा में केमिकल होता है।

– ऐसे में यह ध्यान रखें कि जितना ज्यादा एसपीएफ , उतना ही ज्यादा केमिकल।

– चूंकि भारत में अल्ट्रावायलेट किरणें ज्यादा खतरनाक स्तर की नहीं हैं इसलिए यहां फिजिकल सनस्क्रीन का इस्तेमाल काफी है।

सनस्क्रीन में केमिकल – सनस्क्रीन में कई तरह के ऐसे केमिकल का इस्तेमाल होता है जो यूवीए और यूवीबी रेडिएशन को सोखते हैं। – अधिकतर सनस्क्रीन में dioxybenzone, oxybenzone या sulisobenzone जैसे केमिकल होते हैं। – बाजार में कई हर्बल सनस्क्रीन भी उपलब्ध हैं, जिन्हें बनाने वाली कंपनियां इनके 100 पर्सेंट हर्बल और सुरक्षित होने का दावा करती हैं।

मॉइश्चराइज करना भी जरूरी

त्वचा की प्राकृतिक नमी बरकरार रखने के लिए उसे मॉइश्चराइज करने की जरूरत होती है। – आजकल ऐसे बहुत सारे मॉइश्चराइजर मार्केट में हैं जिनमें एसपीएफ भी होता है। ऐसे में आप अपने लिए मॉइश्चराइजर वाला सनस्क्रीन चुन सकते हैं। – ऐसा भी कर सकते हैं कि पहले त्वचा पर मॉइश्चराइजर लगाएं, फिर सनस्क्रीन लगाएं या सनस्क्रीन में थोड़ा मॉइश्चराइजर मिलाकर लगाएं। इससे सनस्क्रीन का असर कम नहीं होता। – अगर आपकी त्वचा तैलीय है या बहुत ज्यादा पसीना आता है तो चिपचिपेपन से बचने के लिए सनस्क्रीन में थोड़ा लैक्टोकैलामाइन लोशन मिलाकर लगाएं।

केमिकल से नुकसान – इन केमिकल्स से कई बार त्वचा पर रिऐक्शन भी देखे जाते हैं। – इसके लक्षणों में मुंहासे, जलन, छाले पड़ना, रूखापन, खुजली, लाली, सूजन, दर्द और त्वचा में खिंचाव आदि शामिल हैं। – अगर इस तरह के लक्षण दिखें तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं। आमतौर पर इस तरह के रिऐक्शन उन सनस्क्रीन से होते हैं जिनमें para-aminobenzoic acid (PABA) या benzophenones होते हैं। – कुछ सनस्क्रीन में अल्कोहल, खुशबू या प्रिजरवेटिव भी होते हें। अगर आपकी त्वचा में अलर्जी की समस्या हो तो ऐसे सनस्क्रीन का इस्तेमाल बिल्कुल न करें।

घर के अंदर भी जरूरी सनस्क्रीन

घर से बाहर निकलते समय तो सनस्क्रीन लगाने की सलाह दी ही जाती है, लेकिन एक्सपर्ट्स का मानना है कि घर के अंदर भी सनस्क्रीन लगाना फायदेमंद होता है, क्योंकि आर्टिफिशल लाइट भी त्वचा पर असर डालती है। इनमें भी कुछ मात्रा में रेडिएशन होता है। घर के भीतर भी एक बार एसपीएफ 15 तक का सनस्क्रीन लगाना चाहिए।

रखें इन बातों का ख्याल – सनस्क्रीन को आंखों के आस-पास न लगाएं, क्योंकि आंखों में जाकर यह पेपर स्प्रे की तरह असर दिखा सकता है। अगर गलती से भी आपकी आंख में सनस्क्रीन चला जाए तो आंखों को ताजे पानी से तब तक धोएं, जब तक जलन न निकल जाएं। इसके बाद गुलाब जल कॉटन में डुबोकर आंखों पर रखें या खीरे का स्लाइस काटकर आंखों पर रखें। इससे आंखों को आराम मिलेगा। अगर इससे भी समस्या दूर नहीं होती, तो जल्द-से-जल्द डॉक्टर को दिखाएं। – कभी भी सनस्क्रीन को सीधे चेहरे पर स्प्रे न करें। – सनस्क्रीन की बॉटल बच्चों की पहुंच से दूर रखें। उन्हें इसे खुद लगाने के लिए भी न दें। – आंखों को धूप के असर से बचाने के लिए गॉगल्स पहनें।

कैसे करें इस्तेमाल

त्वचा 6 तरह की होती है। यह एक तरह की रेटिंग है।

– टाइप 1 व 2 वाली त्वचा काफी गोरी होती है। इन पर धूप का असर ज्यादा होता है। जितनी ज्यादा डार्क त्वचा होती है, धूप का असर सहने की क्षमता उसमें उतनी ही ज्यादा होती है।

– भारतीयों की त्वचा आमतौर पर 4 से 6 टाइप की होती है, जिस पर 15 से 20 एसपीएफ वाले सनस्क्रीन का रेग्युलर इस्तेमाल काफी होता है।

– धूप में जाने से 20 मिनट पहले सनस्क्रीन लगाएं, ताकि आपकी त्वचा इसे पूरी तरह सोख ले।

– अगर स्विमिंग के लिए जा रहे हैं, तो सामान्य सनस्क्रीन का कोई मतलब नहीं बनता, यह फौरन धुल जाएगा। यहां आपको जरूरत है, वॉटरप्रूफ सनस्क्रीन की।

– स्विमिंग पूल में इस्तेमाल होने वाला क्लोरीन भी त्वचा को रूखा बना सकता है जिससे इस पर टैनिंग जल्दी होती है।

– अगर समुद, बर्फ या रेतीली जगह पर जाएं तो ज्यादा मात्रा में सनस्क्रीन लगाएं, क्योंकि इन जगहों पर सूरज की किरणें सीधी आपकी त्वचा पर पड़ती है।

सनबर्न और सनटैन में अंतर

सनबर्न होने पर त्वचा लाल हो जाती है। इसमें जलन होती है। ज्यादा बर्न होने पर त्वचा में सूजन और चकत्ते भी हो सकते हैं। यह फ्लू की तरह दिख सकता है। ऐसे में बुखार, सिरदर्द, कमजोरी का अहसास भी हो सकता है। – लगातार सनबर्न से त्वचा का रंग बदलने लगता है और यह सामान्य से डार्क दिखने लगती है। इसे सनटैन कहते हैं। सनटैन होने पर त्वचा की ऊपरी परत मोटी और खुरदरी भी हो जाती है, जिससे इन्फेक्शन और झुरिर्यों का खतरा बढ़ जाता है।