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पीजीआई में इलाज कराना है तो समय व धैर्य रखें

सरकारी चिकित्सालयों में देखा जा रहा है कि मरीजों की भीड़ दिन प्रति दिन बढ़ती जा रही है। सरकार द्वारा जनता की सेहत के मामले में भरसक प्रयत्न किये जाने के बावजूद मरीजों की बढ़ती संख्या और डॉक्टरों की कमी के कारण हालात पर काबू पाना मुश्किल हो रहा है।

प्राइवेट अस्पतालों से इलाज कराना आम आदमी के वश से बाहर हो चला है। वहां इलाज़ का खर्चा सहन करना हर एक के बस की बात नहीं। मरीज़ की सुविधा का ख्याल प्राइवेट अस्पतालों में सरकारी हस्पतालों से ज़्यादा रखा जाता है लेकिन इसके लिए मरीज को भारी मूल्य भी चुकाना पड़ता है। इसके विपरीत सरकारी अस्पतालों में इलाज काफी सस्ता है। अच्छे चिकित्सालयों का अभाव होने के कारण शहरों में मल्टीनेशनल अस्पतालों और पीजीआई में लोग इलाज कराने में अपना विश्वास रखते हैं। पीजीआई में आने वाले केवल चंडीगढ़ के रहने वाले नहीं बल्कि पंजाब, हरियाणा, हिमाचल और यूपी से भी मरीज दिखाने आते हैं और यही कारण है कि चाहे इमरजेंसी वार्ड हो और चाहे ओपीडी हो आपको ज़रूरत से ज़्यादा मरीजों व उनके साथ आने वालों की भीड़ नजर आएगी।

पी जी आई से इलाज कराने के लिए धैर्य रखना ज़रूरी है। यहां के डॉक्टरों की विशेषता है कि किसी भी बीमारी का जांच के पश्चात ही इलाज शुरू किया जाता है और उचित तरीका भी यही है लेकिन इसके लिए मरीज को धैर्य रखने की ज़रूरत है। ओपीडी में डॉक्टरों को अपनी रिपोट्र्स दिखाने में हर बार उन्हीं सब प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है जिनसे मरीज़ को सर्वप्रथम पीजीआई में आकर अपना नाम ओपीडी में रजिस्टर कराकर डॉक्टर को दिखाना पड़ता है। पीजीआई के डॉक्टर हों या लैबोरटरी में काम करने वाले सब के लिए मरीजों का उपचार करने और लैबोरटरी में जांच करने में अधिक समय लगता है। डॉक्टर और लैबोरेटरी में काम करने वाले कर्मचारी बहुत कम हैं। सीटी स्कैन, अल्ट्रा साउंड व एमआरआई के लिए भी मरीजों को बड़ी लम्बी लम्बी तारीखें मिलती हैं जिससे इलाज में कहीं न कहीं कमी आ सकती है। ऐसे में प्रशासन के लिए यह ज़्ारूरी बन जाता है कि वह लोगों के स्वास्थ्य संबंधी योजनाओं को सफल बनाने के वास्ते डॉक्टरों, तकनीकी कर्मचारियों और प्रशासनिक कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि करें। मरीजों से निपटने के लिए सांयकाल को भी ओपीडी की व्यवस्था करनी होगी ताकि अधिक से अधिक मरीजों को इसका लाभ मिल सके। मरीजों के खून, पेशाब की जांच के लिए और स्कैन, अल्ट्रा साउंड व एमआरआई के लिए आउटसोर्सिंग को अपनाना होगा ताकि समय रहते जांच रिपोट्र्स एकत्र की जा सकें और इलाज शुरू हो सके। जो मरीज़ या उनके रिश्तेदार बाहर के शहरों से आते हैं उनके लिए सस्ते खाने और उनके ठहरने के लिए सरकारी सरायें उपलब्ध कराने की भी महती आवश्यकता है, प्रशासन को इस विशेष रूप से ध्यान देना होगा। डॉक्टरों की यह बात प्रशंसनीय है कि जब वह पूरी तरह से संतुष्ट हो जाते हैं और बीमारी को ठीक तरह से परख लेते हैं तभी इलाज शुरू करते हैं। समय रहते जब मरीज का ईलाज शुरू हो जाए तो फिर मरीज को विश्वास हो जाता है कि अब मरीज को यहां प्रॉपर ट्रीटमेंट मिलेगा और निश्चित रूप से ठीक होकर जाएगा लेकिन कई बार लोग अपने साथ मरीजों को पीजीआई में तब लेकर पहुंचते हैं जब मरीज लास्ट स्टेज में होता है क्योंकि स्थानीय चिकित्सक उसे तब छोड़ते हैं जब उसका इलाज करना असम्भव हो जाता है और आर्थिक रूप से भी उसे पूरा निचोड़ लेते हैं और उसे हायर सेंटर जाने के लिए कहते हैं। ऐसे में पीजीआई के चिकित्सकों द्वारा हरसंभव प्रयास के बावजूद जब मरीज बच नहीं पाता तो लोग पीजीआई को दोषी ठहराने लगते हैं लेकिन यदि समय रहते मरीज पीजीआई पहुंच जाए तो मरीज के लिए पीजीआई से बेहतर इलाज कहीं नहीं है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए की आखिर डॉक्टर भी इंसान हैं भगवान तो नहीं। बावजूद अपनी ड्यूटी के अलावा यहां के डॉक्टर दिन रात काम करते हैं। सुबह ओपीडी में आने से पहले यही डॉक्टर वार्डों में मरीजों को देखने जाते हैं और रात को फिर मरीजों को वार्डों में देखने जाते हैं लेकिन हैरानगी की ये बात है कि ये सभी सच्चाई जानते हुए भी लोग डॉक्टरों को दोषी ठहराने से पीछे नहीं रहते। अगर मरीज़ संयम बरते, डॉक्टरों पर विश्वास रखे और समय रहते इलाज शुरू कराए तो निश्चित रूप से वह बीमारी से मुक्ति पा लेगा।